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पटना – अब्दुल क़य्यूम अंसारी हिंदुस्तान की आज़ादी की जंग में एक अहम और जज़्बाती सिपाही रहे। कांग्रेस के नौजवान नेता के तौर पर उनकी पहचान बनी। कलकत्ता में उन्होंने साइमन कमीशन के ख़िलाफ़ खुलकर आवाज़ बुलंद की। अंसारी साहब ने उर्दू अख़बार अल-इस्लाह और अंग्रेज़ी मैगज़ीन मसावात निकालकर नौजवानों में अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ सोच और जागरूकता पैदा की।
वो मुस्लिम लीग की फूट डालने वाली सियासत के सख़्त मुख़ालिफ़ थे। उन्होंने मुस्लिम लीग के असर को रोकने के लिए 1937 में मोमिन कॉन्ग्रेस बनाई और 1938 तक एक मज़बूत तहरीक चलाई। मज़दूरों और ग़रीब तबक़े के हक़ में उन्होंने हमेशा लड़ाई लड़ी।
1946 के बिहार असेंबली इंतेख़ाब में उन्होंने मुस्लिम लीग को शिकस्त देकर 6 सीटें जीतीं और हुकूमत में वज़ीर भी बने। 1947 में पाकिस्तान की तरफ़ से कश्मीर पर हमले के वक़्त उन्होंने नौजवानों को संगठित कर मुस्लिम युवा कश्मीरी मोर्चा बनाया। 1957 में उनकी मेहनत और कामयाबी को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें अखिल भारतीय पिछड़ा वर्ग कमीशन का रुक्न (मेंबर) बनाया।
18 जनवरी 1973 को बिहार में एक हादसे के दौरान उनका इंतक़ाल हो गया। अब्दुल क़य्यूम अंसारी की पूरी ज़िंदगी हिंदू-मुस्लिम एकता, समाजी इंसाफ़ और मुल्क की आज़ादी के लिए वक़्फ़ रही।
