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मौलाना मज़हरुल हक़ का नाम हिंदुस्तान की तहरीक-ए-आज़ादी में एक ऐसी शख़्सियत के तौर पर लिया जाता है, जिन्होंने इल्म, क़लम और क़ौमी जज़्बे से पूरी ज़िंदगी वतन की खिदमत की। 1866 में बिहार के एक ज़मींदार ख़ानदान में पैदा हुए मज़हरुल हक़ ने शुरुआती तालीम घर पर ही हासिल की और फिर पटना कॉलेज से मैट्रिक पास किया। ऊँची तालीम के लिए वह लखनऊ और उसके बाद इंग्लैंड गए, जहाँ से लॉ की डिग्री लेकर लौटे और 1891 से पटना में वकालत शुरू की।
1906 में पटना लौटकर उन्होंने “बिहारी कांग्रेस कमेटी” की बुनियाद रखी और बिहार को कांग्रेस का मज़बूत गढ़ बनाया। 1916 में वह बिहार कांग्रेस कमेटी के सदर चुने गए और डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, अनुग्रह नारायण सिंह व ब्रजकिशोर प्रसाद जैसे नेताओं के साथ मिलकर ग़रीबों और किसानों को आंदोलन से जोड़ा। असहयोग आंदोलन में उनकी सक्रियता इतनी बढ़ी कि उन्हें जेल जाना पड़ा।
मौलाना मज़हरुल हक़ ने सिर्फ़ आज़ादी की लड़ाई ही नहीं, बल्कि बिहार की तालीम और तरक़्क़ी के लिए भी बड़ी जद्दोजहद की। उन्होंने सस्ती तालीम, बिहार विश्वविद्यालय और नौजवानों के इल्मी भविष्य के लिए अपनी ज़िंदगी समर्पित कर दी।
जनवरी 1930 में उनका इंतक़ाल हुआ, लेकिन आज भी बिहार अरबी-फ़ारसी विश्वविद्यालय और “मौलाना मज़हरुल हक़ लाइब्रेरी” उनके नाम से इस जाँबाज़ सिपाही की याद को ज़िंदा रखते हैं।
