बेगम कुलसुम सियानी : आज़ादी की जंग में औरतों की मज़बूत आवाज़

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मुंबई/नई दिल्ली: भारत की आज़ादी की तहरीक में बेगम कुलसुम सियानी का नाम ख़ास अहमियत रखता है। 21 अक्टूबर 1900 को एक नामवर खानदान में पैदा हुईं कुलसुम, शादी के बाद कांग्रेस नेता डॉ. मोहम्मद सियानी के साथ आज़ादी की जंग में क़दम से क़दम मिलाकर चलीं।

1927 में उन्होंने “डागर की चर्चा क्लास” शुरू कर महिलाओं को आंदोलन से जोड़ने का रास्ता खोला। 1930 में “जूनियर क्लब” की सेक्रेटरी बनीं और 1938 में कांग्रेस की प्लानिंग कमेटी की पहली मेंबर चुनी गईं। उनकी कोशिशों से बंबई में सैकड़ों औरतों को तालीम मिली और उन्हें समाज में नई पहचान हासिल हुई।

आजादी के आख़िरी दौर में, 1944 से 1946 तक, उन्होंने ऑल इंडिया वीमेंस कांग्रेस की जर्नल सेक्रेटरी का पद संभाला। यही नहीं, जस्टिस ऑफ़ पीस, एडवाइजरी बोर्ड ऑफ़ एजुकेशन और फिल्म सेंसर बोर्ड जैसे अहम मंचों पर भी उन्होंने अपनी ख़िदमत दी।

उनके काम को देखते हुए 1959 में उन्हें पद्मश्री से नवाज़ा गया। 28 मई 1987 को 86 साल की उम्र में कैंसर से जंग लड़ते हुए उनका निधन हो गया। लेकिन बेगम कुलसुम सियानी का नाम हमेशा उन महिलाओं में शुमार रहेगा जिन्होंने आज़ादी और तालीम के लिए अपनी ज़िंदगी समर्पित कर दी।

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