ग़ुलाम हुसैन हिदायतुल्लाह : इंसाफ़ और आज़ादी की जंग का सिपाही

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सिंध के शिकारपुर ज़िले में 1879 में जन्मे ग़ुलाम हुसैन हिदायतुल्लाह ने कराची और बम्बई से वकालत की पढ़ाई की। लेकिन अंग्रेज़ों की अदालतों में ग़रीबों और मज़लूमों के साथ हो रहे ज़ुल्म देखकर उन्होंने वकालत से आगे बढ़कर समाज और मुल्क की आज़ादी की लड़ाई में कदम रखा। वे मुफ़्त क़ानूनी मदद देकर ग़रीबों के सहारे बने।

बहुत जल्द ही उनका नाम न्यायप्रिय नेता के रूप में मशहूर हुआ। हैदराबाद म्युनिसिपल बोर्ड के वाइस-प्रेसिडेंट बने और 1921 में बम्बई लेजिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य चुने गए। वहाँ उन्होंने छुआछूत, जात-पात और औरतों के अधिकारों की आवाज़ बुलंद की। महिलाओं को वोट का अधिकार दिलाने की लड़ाई में भी वे सबसे आगे रहे।

1921 में वे बम्बई सरकार में मंत्री बने और लगातार सात साल तक सेवा दी। 1928 में गवर्नर की सलाहकार समिति के सदस्य और 1934 से 1936 तक सेंट्रल असेंबली के सदस्य रहे। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि रही—सिंध को बम्बई से अलग कर स्वतंत्र प्रांत बनाने का आंदोलन, जो सफल हुआ।

मुस्लिम लीग की राजनीति का विरोध करते हुए उन्होंने अवाम के हक़ की लड़ाई जारी रखी। 1948 में उनका इंतक़ाल हुआ।

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