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भारत की आज़ादी की लड़ाई में रज़िया ख़ातून का नाम उन महिलाओं में शुमार है जिन्होंने साहस और जज़्बे से अंग्रेज़ी हुकूमत को चुनौती दी। वे हमेशा ग़रीबों और मज़लूमों की हक़ की लड़ाई लड़ीं और महिलाओं को इस संघर्ष का अहम हिस्सा बनाने में जुटीं।
रज़िया ख़ातून कांग्रेस से सक्रिय रूप से जुड़ीं और आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। कई बार उन्हें जेल जाना पड़ा, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उनका मानना था कि बिना महिलाओं की भागीदारी के आज़ादी अधूरी है। इसी सोच के साथ उन्होंने महिलाओं को न सिर्फ़ शिक्षा की ओर अग्रसर किया बल्कि उन्हें आंदोलन का सिपाही भी बनाया।
उनकी कोशिशों से महिलाओं में नया आत्मविश्वास जगा और उन्होंने खुले तौर पर अंग्रेज़ी सत्ता के खिलाफ आवाज़ बुलंद की। रज़िया ख़ातून का योगदान केवल राजनीतिक नहीं था, बल्कि सामाजिक रूप से भी बेहद अहम रहा। वे शिक्षा, जागरूकता और संगठन को आज़ादी की बुनियाद मानती थीं।
रज़िया ख़ातून हमें यह सिखाती हैं कि असली आज़ादी तभी मिलती है जब समाज की आधी आबादी संघर्ष की राह में कंधे से कंधा मिलाकर साथ खड़ी हो। उनका साहस और त्याग इतिहास के पन्नों में हमेशा ज़िंदा रहेगा।
