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गाज़ा सिटी एक बार फिर आग और मलबे में डूब गया। शुक्रवार को इज़रायल ने पश्चिमी गाज़ा सिटी में मौजूद Mushtaha Tower, 12 मंज़िला ऊँची इमारत, को मिट्टी में मिला दिया। यह इमारत उन सैकड़ों परिवारों के बीच खड़ी थी, जो पहले ही युद्ध से बेघर होकर आस-पास के तंबुओं में रह रहे थे।
हमले से पहले इज़रायली सेना ने लोगों को सिर्फ़ 15 मिनट का वक्त दिया — इतने कम समय में दर्जनों परिवार अपने बच्चों और बुज़ुर्गों को लेकर बाहर भागते नज़र आए। थोड़ी ही देर में टावर ज़मीन पर ढह गया।
इज़रायल का दावा है कि यह इमारत हमास का ठिकाना थी। लेकिन टावर की प्रबंधन समिति ने इसे पूरी तरह “झूठ और बेबुनियाद आरोप” बताया। उनका कहना है कि यहाँ न कोई हथियार थे, न ही कोई सैन्य ठिकाना — सिर्फ़ आम लोग रहते थे।
इज़रायली रक्षा मंत्री ने कहा कि “गाज़ा में नरक के दरवाज़े खुल रहे हैं”। यह चेतावनी आने वाले और हमलों की ओर इशारा करती है।
इस हमले के बाद गाज़ा की सड़कों पर सिर्फ़ धुआँ, मलबा और लोगों की चीखें गूंज रही हैं। परिवार अपनी ज़िंदगी की जमा-पूँजी ढहते मलबे में खोज रहे हैं। गाज़ा आज सिर्फ़ युद्ध का मैदान नहीं, बल्कि इंसानियत की सबसे बड़ी परीक्षा बन चुका है।
