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रियाद, 24 अक्टूबर 2025 — सऊदी अरब में इस्लामी नेतृत्व में बड़ा बदलाव हुआ है। किंग सलमान बिन अब्दुलअज़ीज़ अल सऊद ने बुधवार को वरिष्ठ इस्लामी विद्वान शेख सालेह बिन फौज़ान अल फौज़ान को देश का नया ग्रैंड मुफ़्ती (मुख्य इस्लामी न्यायविद) नियुक्त किया है। यह नियुक्ति उनके पूर्ववर्ती शेख अब्दुलअज़ीज़ बिन अब्दुल्लाह अल शेख के निधन के बाद की गई है, जिनका 23 सितंबर को 82 वर्ष की आयु में निधन हुआ था।
शेख अल फौज़ान अब काउंसिल ऑफ सीनियर स्कॉलर्स (वरिष्ठ धार्मिक परिषद) के अध्यक्ष, और जनरल प्रेसीडेंसी ऑफ इस्लामिक रिसर्च एंड इफ्ता (इस्लामी शोध एवं फतवा विभाग) के प्रमुख के रूप में भी कार्य करेंगे। उन्हें मंत्री स्तर का दर्जा दिया गया है।
यह नियुक्ति क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की सिफारिश पर की गई, जैसा कि सऊदी प्रेस एजेंसी (SPA) ने अपने आधिकारिक बयान में पुष्टि की।
धार्मिक विद्वत्ता का लंबा सफर
1935 में सऊदी अरब के क़सीम प्रांत में जन्मे शेख सालेह अल फौज़ान का बचपन संघर्षों से भरा रहा। पिता के निधन के बाद उनका पालन-पोषण उनके परिजनों ने किया। उन्होंने स्थानीय इमाम शेख हमूद बिन सुलैमान अल तिलाल से क़ुरान की शिक्षा प्राप्त की और फिर औपचारिक धार्मिक शिक्षा के लिए कॉलेज ऑफ शरीअह, रियाद में दाखिला लिया।
1961 में उन्होंने शरीअह में स्नातक की डिग्री प्राप्त की और इसके बाद इस्लामी न्यायशास्त्र (फ़िक़्ह) में मास्टर और डॉक्टरेट (PhD) की उपाधि हासिल की।
उन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक स्कूल शिक्षक के रूप में की थी, लेकिन शीघ्र ही वे इस्लामी विद्या, फतवों और शिक्षाओं के क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित नाम बन गए।
जनता में लोकप्रिय चेहरा: “नूर अला अल-दर्ब” से पहचान
शेख अल फौज़ान सऊदी अरब ही नहीं, बल्कि पूरे इस्लामी जगत में अपने रेडियो कार्यक्रम “नूर अला अल-दर्ब” जिसका मतलब है (प्रकाश का मार्ग) के लिए प्रसिद्ध हैं। यह कार्यक्रम दशकों से सऊदी रेडियो पर प्रसारित हो रहा है, जिसमें वे जनता के धार्मिक और सामाजिक सवालों के जवाब देते हैं।
इसके अलावा वे कई टेलीविज़न कार्यक्रमों, पुस्तकों और फतवों के ज़रिए इस्लामी विचारधारा को जन-जन तक पहुँचाने में अग्रणी रहे हैं।
उनकी लिखी किताबें और धार्मिक व्याख्यान अरब जगत, अफ्रीका और दक्षिण एशिया तक व्यापक रूप से पढ़े जाते हैं। उन्हें सलफी विचारधारा के प्रमुख विद्वानों में से एक माना जाता है।
विवादों के बावजूद धार्मिक प्रतिष्ठा बरकरार
हालाँकि शेख अल फौज़ान की विद्वत्ता पर कोई प्रश्न नहीं उठता, लेकिन उनके कुछ बयानों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विवाद खड़ा किया है। 2017 में ह्यूमन राइट्स वॉच ने उनके उन बयानों की आलोचना की थी, जिनमें उन्होंने शिया मुसलमानों को “शैतान के भाई” बताया था। उन्होंने यमन के हूती विद्रोहियों के विरुद्ध तीखे बयान दिए, यह कहते हुए कि “वे इस्लाम और सऊदी पवित्र स्थलों के दुश्मन हैं।”
2003 में दिए गए उनके एक बयान ने पश्चिमी मीडिया में हलचल मचा दी थी, जब उन्होंने कहा था — “ग़ुलामी इस्लाम का हिस्सा है। यह जिहाद से जुड़ी एक वास्तविकता है, और जब तक इस्लाम रहेगा, जिहाद और ग़ुलामी का सिद्धांत रहेगा।”
2016 में उन्होंने मोबाइल गेम पोकेमॉन गो को “हराम” घोषित करते हुए कहा था कि यह “जुए और भाग्य पर आधारित खेल” है।
विडंबना यह है कि आज सऊदी अरब की पब्लिक इन्वेस्टमेंट फंड (PIF), जो क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की विज़न 2030 योजना के तहत कार्य करती है, ने निन्टेंडो और निऐंटिक जैसी गेमिंग कंपनियों में भारी निवेश किया है — जो पोकेमॉन गो की निर्माता हैं।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव और चुनौतियाँ
शेख सालेह अल फौज़ान का प्रभाव सऊदी सीमाओं से कहीं आगे तक फैला हुआ है।
एक ओर वे अरब दुनिया में सलफी विचारधारा के प्रमुख प्रवक्ता हैं, तो दूसरी ओर, उनके कट्टर विचारों को लेकर पश्चिमी और मानवाधिकार संगठनों ने समय-समय पर चिंता जताई है।
नए ग्रैंड मुफ़्ती के रूप में, उन्हें सऊदी अरब के भीतर और बाहर दोनों ही स्तरों पर संतुलन बनाए रखना होगा — खासकर उस दौर में जब क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान समाज और अर्थव्यवस्था को “आधुनिक” दिशा में ले जाने की कोशिश कर रहे हैं।
निष्कर्ष
90 वर्ष की आयु में शेख सालेह अल फौज़ान का यह कार्यभार न केवल उनके जीवन की उपलब्धि है, बल्कि सऊदी धार्मिक संस्थान के इतिहास में एक नए अध्याय की शुरुआत भी है। उनकी नियुक्ति यह संकेत देती है कि सऊदी अरब, परंपरा और सुधार — दोनों के बीच संतुलन साधने की कोशिश कर रहा है।
