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क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़े में तथाकथित मानवाधिकार उल्लंघन मामलों की जाँच कर रहे स्वतंत्र आयोग ने कहा है कि इसराइल ने ग़ाज़ा में ‘चार जनसंहार कृत्यों’ को अंजाम दिया है, जबकि इसराइली नेताओं ने जनसंहार के लिए उकसाने का काम किया है. आयोग प्रमुख ने मंगलवार को यूएन महासभा की समिति के समक्ष अपनी नवीनतम रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए यह जानकारी दी है.
स्वतंत्र आयोग की प्रमुख नवी पिल्लै ने कहा कि इस रिपोर्ट के निष्कर्ष, ‘जनसंहार के अपराध के लिए दंड, उसकी रोकथाम की सन्धि’ के तहत किए गए क़ानूनी विश्लेषण पर आधारित है.
उनका निष्कर्ष है कि इसराइल, ग़ाज़ा में चार जनसंहारक कृत्यों को अंजाम देने के लिए ज़िम्मेदार है, जिन्हें ग़ाज़ा में फ़लस्तीनियों को तबाह कर देने की मंशा के साथ किया गया.
“आयोग ने पाया है कि इसराइली राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और पूर्व रक्षा मंत्री ने जनसंहार के लिए उकसाया है.”
पूर्व यूएन मानवाधिकार प्रमुख नवी पिल्लै के अनुसार, ग़ाज़ा में निष्ठुर परिस्थितियाँ हैं, जो लम्बे समय से जारी हैं और इतिहास में फ़लस्तीनी लोगों के विरुद्ध सबसे व्यापक हमले को अंजाम दिया गया है.
भीषण तबाही
स्वतंत्र मानवाधिकार जाँच आयोग की प्रमुख ने बताया कि नाज़ुक परिस्थितियों में लागू युद्धविराम और बन्धकों व बन्दियों की रिहाई से आशा बंधी है, मगर यह उस बर्बादी को दूर नहीं कर सकती है, जोकि पहले ही हो चुकी है.
“ग़ाज़ा पट्टी मलबे का ढेर बन चुका है, और यह अब लगभग रहने योग्य नहीं है.”
उन्होंने बताया कि इसराइली अधिकारियों ने फ़लस्तीनी आबादी को वहाँ से बाहर भेजने, बस्तियों का निर्माण करने और इस क्षेत्र का हरण करने की योजनाओं का सार्वजनिक रूप से समर्थन किया है.
हालांकि संघर्षविराम की वजह से इन नीतियों को फ़िलहाल बस्ते में डाल दिया गया है, मगर इसराइली अधिकारियों के हालिया वक्तव्यों से यह स्पष्ट है कि ये मंशा अब भी मौजूद है.
यूएन महासभा के लिए यह, नवी पिल्लै की अन्तिम रिपोर्ट थी. वह जुलाई 2021 से इस स्वतंत्र, अन्तरराष्ट्रीय जाँच निकाय के प्रमुख के पद पर रही हैं.
क़ाबिज़ पश्चिमी तट
जाँच आयोग के अनुसार, इसराइल ने पूर्वी येरूशलम समेत क़ाबिज़ पश्चिमी तट में, अक्टूबर 2023 से ऐसी नीतियाँ अपनाई हैं, जोकि फ़लस्तीनियों की जबरन बेदख़ली, इसराइली यहूदी नागरिकों की उपस्थिति का दायरा बढ़ाने, और पश्चिमी तट के अधिकाँश इलाक़े का हरण करने की मंशा को दर्शाता है.
इसके तहत, इसराइली बस्तियों के उन निवासियों को भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से समर्थन दिया जा रहा है, जोकि हिंसा का सहारा लेते हैं.
नवी पिल्लै ने कहा कि इसका मक़सद फ़लस्तीनियों के स्व-निर्धारण, राष्ट्र के अधिकार को साकार होने से रोकना और अनिश्चितकाल के लिए क़ब्ज़े को जारी रखना है.
जवाबदेही पर बल
उन्होंने सदस्य देशों से आग्रह किया कि अन्तरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय व उसके द्वारा की गई जाँच को समर्थन के ज़रिए न्याय व जवाबदेही सुनिश्चित की जानी होगी. साथ ही, संदिग्धों व दोहरी नागरिकता वाले लोगों पर अदालती कार्रवाई के लिए सार्वभौमिक न्याय अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल किया जाना होगा.
“मेरे लिए यह पीड़ा की बात है कि इस आयोग की प्रमुख के तौर पर अपनी अन्तिम रिपोर्ट में, दूसरे विश्व युद्ध के बाद की बहुपक्षीय व्यवस्था, इस जनसंहार को रोकने में विफल रही है.”
उन्होंने सच्चाई व आपसी मेलमिलाप की अपील करते हुए कहा कि केवल संक्रमणकालीन न्याय के ज़रिए ही शान्ति को पनपने का अवसर दिया जा सकता है.
स्थाई युद्धविराम का आग्रह
क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़े के लिए स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ फ्रांचेस्का ऐल्बानीज़ ने भी यूएन महासभा की समिति को सम्बोधित करते हुए ग़ाज़ा में स्थाई युद्धविराम की अपील की.
उन्होंने सदस्य देशों से आग्रह किया कि सभी क़ाबिज़ इलाक़ों से इसराइल को वापिस लौटना होगा और इसराइली बस्तियों को हटाया जाना होगा.
इसके अलावा, विशेष रैपोर्टेयर ऐल्बानीज़ ने इसराइल के साथ सभी सैन्य, व्यापार व कूटनैतिक सम्बन्ध तब तक स्थगित किए जाने की बात कही, जब तक इसराइल द्वारा इस जनसंहार, अवैध क़ब्ज़े और रंगभेद का अन्त नहीं कर लिया जाता.
उन्होंने तथाकथित अपराधों में संलिप्त व्यक्तियों के विरुद्ध मुक़दमा चालने और उनकी जवाबदेही तय किए जाने पर भी बल दिया है.
“इस तरह से हम, मृतकों की स्मृति का सम्मान करने की शुरुआत करेंगे. और यदि सुरक्षा परिषद गतिरोध की शिकार है, तो महासभा को शान्ति के लिए एकजुटता के तहत, पहले से कहीं अधिक संकल्प के साथ काम करना होगा.”
स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ या विशेष रैपोर्टेयर की नियुक्ति, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद द्वारा की जाती है, जो स्वैच्छिक और अवैतनिक आधार पर अपना काम करते हैं.
वो यूएन स्टाफ़ नहीं होते हैं और वो किसी सरकार या संगठन से स्वतंत्र होकर काम करते हैं.
Source: UN News Hindi
