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सुंदरबन के हिंगलगंज ब्लॉक के छोटे से गाँव उत्तर मामुदपुर में जन्मी हलीमा खातून ने गरीबी और समाज की रूढ़ियों को चुनौती देकर महिलाओं के हक़ की आवाज़ बन गईं। उनके माता-पिता बीड़ी बनाकर घर चलाते थे, लेकिन उन्होंने तय किया कि बेटी पढ़-लिखकर आगे बढ़ेगी।
हलीमा गाँव की पहली लड़की बनीं जिसने कलकत्ता यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया। यह कदम आसान नहीं था। गाँव वालों ने उनका विरोध किया। हलीमा याद करती हैं – “जब मैं यूनिवर्सिटी गई, तो यह विद्रोह जैसा था। आलोचना बहुत हुई, लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी।”
पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने महसूस किया कि महिलाओं की ज़िंदगी कितनी कठिन है, वे चुप रहती हैं, बेबस होती हैं और अपने हक़ तक से दूर कर दी जाती हैं। हलीमा ने मछुआरा परिवारों की महिलाओं से बात की, उनकी समस्याएँ सुनीं और उन्हें अपनी आवाज़ उठाने के लिए प्रेरित किया।
साल 2009 में वे ActionAid India से जुड़ीं। यहाँ उन्होंने देखा कि ज्यादातर महिलाओं के पास न राशन कार्ड था, न वोटर आईडी, और लड़कियों की पढ़ाई लगभग नामुमकिन थी। हलीमा ने बैठकों और ट्रेनिंग के ज़रिए गाँव-गाँव की महिलाओं को जोड़ा।
धीरे-धीरे यह कोशिश एक बड़े आंदोलन में बदल गई। आज हसनाबाद-हिंगलगंज मुस्लिम महिला संघ 15 पंचायतों की 2000 से ज़्यादा महिलाओं को जोड़कर उनके हक़ और इज़्ज़त की लड़ाई लड़ रहा है।
