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नवाब सैय्यद मोहम्मद, मीर हमायूं बहादुर के बेटे और टीपू सुल्तान के ख़ानदान से ताल्लुक़ रखते थे। वे न सिर्फ़ अमीर मुसलमानों में शुमार थे, बल्कि एक सच्चे नेशनलिस्ट भी थे।
उन्होंने 1894 में कांग्रेस से सियासी सफ़र शुरू किया और कांग्रेस को मज़बूत करने के लिए जज़्बाती व माली मदद दी। उनका मानना था कि हिंदुस्तान की आज़ादी सिर्फ़ हिंदू–मुस्लिम इत्तेहाद से ही मुमकिन है। इसी सोच के साथ उन्होंने हर मंच से मज़हबी फ़र्क़ मिटाकर भाईचारे का पैग़ाम दिया।
1903 में वे मद्रास विधान परिषद के सदस्य बने और 1905 में इंपीरियल काउंसिल में भी शामिल हुए। उनकी सियासत का मक़सद सिर्फ़ आज़ादी नहीं बल्कि तालीम, जागरूकता और क़ौमी एकता को मज़बूत करना था।
12 फ़रवरी 1919 को उनके इंतक़ाल के साथ एक बुलंद आवाज़ ख़ामोश हुई, मगर नवाब सैय्यद मोहम्मद आज भी हिंदू–मुस्लिम एकता और आज़ादी की तहरीक़ के चमकते सितारे हैं।
