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हैदराबाद में 1919 में पैदा हुईं बेग़म माजदा बानो ने बचपन से ही इल्म और अदब में गहरी दिलचस्पी ली। शादी के बाद भी उन्होंने तालीम और समाजी काम जारी रखे। 1938 में कांग्रेस में शामिल होकर उन्होंने ख़्वातीन को आज़ादी की जंग में शामिल करने का बीड़ा उठाया। उनके जलसों और मुशायरों ने अवाम में आज़ादी का जज़्बा जगाया।
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में बेग़म माजदा बानो ने दिल्ली और आसपास के इलाक़ों में ख़ुफ़िया बैठकों का इंतज़ाम किया और तहरीक को मज़बूत बनाया। अंग्रेज़ हुकूमत ने उनकी सरगर्मियों को देखते हुए कई बार नज़रबंद और पूछताछ की, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उनकी बहादुरी और हौसले ने औरतों में आज़ादी के लिए लड़ने का नया जज़्बा पैदा किया।
आज़ादी के बाद भी उन्होंने औरतों की तालीम और हक़ूक़ के लिए काम जारी रखा। 12 जनवरी 1974 को उनके योगदान को ख़ास एज़ाज़ से नवाज़ा गया। बेग़म माजदा बानो का नाम उन जांबाज़ ख़वातीन में हमेशा याद किया जाएगा जिन्होंने अपनी हिम्मत, क़ुर्बानियों और हौसले से मुल्क की तहरीक-ए-आज़ादी को मज़बूत किया।
