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शाह फहद नसीम
स्वर्ण मंदिर जिस का पुराना नाम हरमंदिर साहब है. इस का संग ए बुनियाद जहांगीर के ज़माने के मशहूर सूफ़ी बुज़ुर्ग हज़रत मुहम्मद मियां मीर लाहौरी ने रखा था. मियां साहब अपने ज़माने के मशहूर ओ मारूफ बुजुर्ग थे. आपका ताल्लुक़ तसव्वुफ़ के कादरी सिलसिले था. आप दूसरे खलीफा अमीरुल मोमिनीन सय्यदिना उमर फ़ारूक़ की औलाद में से थे. शहज़ादा दारा शिकोह भी आपका मुरीद था. 1635 में आपने वफ़ात पाई दारा शिकोह ने आप की नमाज़ ए जनाज़ा पढ़ाई और लाहौर में दफ़्न हुए.
सिख मज़हब के पांचवे गुरु, गुरु अर्जुन जी जब लाहौर तशरीफ़ ले गए तो आप ने मियां साहब से मुलाकात की. दो साल तक ये मुलाकातें जारी रहीं. 1589 में जब गुरु जी ने गुरुद्वारा हरमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) की तामीर का इरादा किया तो गुरु जी ने मियां साहब को संग बुनियाद रखने के लिए दरख्वास्त की. आपने गुरु जी की दरख्वास्त को कुबूल फरमाया और सिख साहिबान इन्तेहाई अकीदत के साथ आपकी पालकी अपने कांधों पर उठाकर लाहौर से अमृतसर लाए और आपके मुबारक हाथों से आलमी शोहरत याफ़ता मुक़द्दस इबादत गाह का संग ए बुनियाद रखा गया. जहां हर साल लाखों अकीदतमंद माथा टेकते हैं.
पंजाब के फरीदकोट में मौजूद गुरुद्वारा गोदड़ी साहिब (ये गुरुद्वारा हज़रत बाबा फरीद गंज ए शकर फ़ारुक़ी के नाम पर बना हुआ है क्यूंकि इस जगह पर बाबा साहब ने पेड़ के नीचे आराम किया था और अपनी गोदड़ी यानी गाउन को पेड़ की शाख पर लटकाया था) हज़रत का संग बुनियाद सिख हज़रात ने हज़रत ख्वाजा राशिद फ़रीदी (सज्जादा नशीं, आसताना ए आलिया बाबा फ़रीदी रजबपुर, अमरोहा) से 23 सितंबर 1981को रखवाया. इसकी तामीर 1986 में पूरी हुई. 23 सितंबर 1986 को तीन किलोमीटर लंबा जुलूस शहर से गोदड़ी साहब लाया गया और ख्वाजा साहब को पालकी में बिठाकर ख़ास इज़्ज़त और एहतराम से ले जाया गया और आप से गुरुद्वारे का इफ़्तेताह (opening) कराया गया और ख्वाजा साहब को बाबा का खिताब दिया और सरोपा अता किया. ये ख़बर पंजाब के सभी अख़बारों में अहमियत के साथ शाया हुई.
पंजाब सिविल सर्विस के एक्जाम में ये सवाल आ चुका है कि उन दो मुस्लिम संतों के नाम लिखिए जिन्होंने गुरुद्वारों का संग ए बुनियाद रखा. ( दुर्र ए फ़रीद, पेज नंबर 54-58 उस्ताद ए मोहतरम जुनैद अकरम फ़ारुक़ी)
क्या खूब इत्तेफाक है कि दोनों ही संत फ़ारुक़ी यानी हज़रत उमर की औलाद में से हैं. रजबपुर(अमरोहा) में ख्वाजा साहब का फै़ज़ अभी भी जारी है और उनका दरबार हिन्दू मुस्लिम सिख एकता का मर्कज़ बना हुआ है.
(ये लेखक के निजी विचार है।)