फ़ातिमा इस्माइल : आज़ादी और समाजसेवा की सशक्त आवाज़

Reading time : 0 minutes

बंबई के मशहूर मेमन ख़ानदान में 4 फ़रवरी 1903 को जन्मी फ़ातिमा इस्माइल ने अपना जीवन देश और समाज की सेवा को समर्पित किया। सियासी माहौल और स्वदेशी तहरीक ने उन्हें बचपन से ही आज़ादी के आंदोलन से जोड़ दिया। उन्होंने आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और सामाजिक सरगर्मियों में भी अहम भूमिका निभाई।

1947 में फ़ातिमा इस्माइल ने पोलियो से पीड़ित बच्चों के लिए एक सोसाइटी की स्थापना की, जो आज भी मरीज बच्चों के इलाज और देखभाल के लिए काम कर रही है। उन्होंने आज़ाद हिंदुस्तान की तामीर में भी सक्रिय योगदान दिया। उनकी सेवाओं को देखते हुए 1958 में उन्हें पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया गया।

फ़ातिमा इस्माइल सिर्फ़ समाजसेवा तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि राजनीति में भी अपनी पहचान बनाई। वह 1979 से 1985 तक राज्यसभा की सदस्य रहीं और जनता के मुद्दों को मजबूती से उठाया।

11 अक्तूबर 1987 को लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया। लेकिन फ़ातिमा इस्माइल का जीवन आज भी इस बात की प्रेरणा है कि आज़ादी की लड़ाई सिर्फ़ अंग्रेज़ों से टकराना नहीं थी, बल्कि समाज को बेहतर बनाना और इंसानियत की सेवा करना भी उसका अहम हिस्सा था।

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *