“थरूर की बौद्धिक राजनीति और राहुल का सामाजिक प्रतिरोध”

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प्रशांत टंडन

कांग्रेस को शशि थरूर से पूछना चाहिए कि पार्टनर तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है?

कुछ साल पहले की बात है एक इंटरव्यू बोर्ड में था. एक कैंडीडेट आये और उन्होंने 7-8 किताबें मेज पर रख दीं.

मैंने पूछा ये क्या है?

उन्होंने बताया कि सब उन्होंने ही लिखी हैं. एक किताब मैंने उठा ली. जब तक दूसरे सदस्य सवाल पूछ रहे थे मैंने कुछ हिस्से पढ़ लिए और उनकी लिखी किताब पर ही सवाल पूछे.

नतीजा जान लीजिये – उनका सेलेक्शन नहीं हुआ था.

थरूर वैसे नहीं हैं लेकिन फटाफट किताबें लिखने की कला उन्हे आती है. इनकी किताबों से थरूर के व्यक्तित्व का अंदाज़ा लगाना कठिन है. किताब लिखने वाले HI (Human Intelligence) ऐप हैं.

थरूर के बारे में पहले ही लिख चुका हूं कि वो पोस्ट ऑडिओलॉजीकल नेता हैं.

वो आरोपों के आधार पर सरकार बदलना चाहते हैं लेकिन बिना सामाजिक और आर्थिक यथास्थिति को चुनौती दिये. कांग्रेस में ऐसे लोगों की भरमार है.

इन सबकी दिक्कत राहुल गांधी की राजनीति से है. राहुल गांधी सामाजिक सत्ता को चुनौती दे रहे हैं, कांग्रेस के पहले नेता हैं जो खुले आम मनुस्मृति को रिजेक्ट कर रहे हैं और आरएसएस\बीजेपी को मनुवादी संगठन बता रहे हैं.

थरूर को ये पसंद नहीं आ रहा है. वो “कैटल क्लास” के बगल में नहीं बैठना चाहते.

और इसीलिये वो कॉर्पोरेट मीडिया के डार्लिंग हैं.

मैं इन बातों को नहीं मानता कि कोई राजनीतिक विवशता है या कोई नस दबी है जिस वजह से वो आरएसएस के पक्ष में सफाई पेश कर रहे हैं. ये उनका वैचारिक रुझान है जो सामने आ रहा हैं.

जो विचारधारा की ज़मीन पर खड़ा रहता है जो पद, प्रलोभन को छोड़कर तमाम दबाव और प्रताड़ना के बावजूद टस से मस नहीं होता.

शशि थरूर और राहुल गांधी की वैचारिक ज़मीन अलग अलग है.

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